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Showing posts from November, 2021

ख्वाहिशें.....

अनगिनत ख्वाहिशों से भरी ये जिंदगी, ख्वाहिशें कुछ पूरी होती, कुछ अधूरी दम तोड़ती। ख्वाहिशों के पीछे दौड़ते हम और तुम, न कभी बिछड़ते न मिल ही पाते। दूर बहुत पीछे से आती कुछ आवाजें, गूंजते से कुछ चेहरे, देर बहोत देर तलक,  जगाते हैं रातों को। ख्वाहिशों की पोटली है, जाने कब खुलेगी,  जाने कब ख़त्म होगी! निरुपमा (18.11.2021)

याद......

  हर बात याद है, या सबकुछ भूल गए! वो आवाज़, वो हंसी, वो शरारत, वो अंदाज... हर बात याद है, या सबकुछ भूल गए! आज फिर एक बार टटोला दिल को, आज फिर एक बार दिल में उतरे हैं। अपनी उंगलियों से हौले हौले कुरेदा है, फिर उसी ज़ख्म को देखने उतरे हैं। और देखा, हर बात याद है अब भी, हर बात याद है। वो आवाज़, वो हंसी, वो शरारत, वो अंदाज... निरुपमा(11.11.2021)