अनगिनत ख्वाहिशों से भरी ये जिंदगी, ख्वाहिशें कुछ पूरी होती, कुछ अधूरी दम तोड़ती। ख्वाहिशों के पीछे दौड़ते हम और तुम, न कभी बिछड़ते न मिल ही पाते। दूर बहुत पीछे से आती कुछ आवाजें, गूंजते से कुछ चेहरे, देर बहोत देर तलक, जगाते हैं रातों को। ख्वाहिशों की पोटली है, जाने कब खुलेगी, जाने कब ख़त्म होगी! निरुपमा (18.11.2021)
ज़िन्दगी के सफहों को पलटते हुए, कुछ ख़ास पल जैसे हाथ पकड़कर रोक लेना चाहते हैं!