Skip to main content

Posts

Showing posts from 2023

इश्क़ की शर्त ....

 दिल के टूटे की आवाज़ कहां होती है, दिल मगर टूटे तो बहोत देर तलक रोता है, कांंपने लगते हैं होंठ कुछ कहते नहीं, और शिकन आंखो में फ़िर साफ़ नजर आता है, एक छोड़ा हुआ होता है, दूजा छूटा हुआ, दोनो के दिल से पर आह... एक निकलती है, इश्क़ की शर्त है, रोना है, दर्द सहना है, लाख रोको मगर इश्क़ कब ठहरता है। निरुपमा (23.11.2023)

कवियों की कल्पनाओं से परे, स्त्री का स्वाभाविक रूप... कुछ यूं.......

स्त्री जब मेहंदी लगाती है, तो वो सोचती है कि उसकी मेहंदी लगी हथेलियों को कोई अपने हाथों में रखकर उनकी खुशबू लेता रहे। जब वो श्रृंगार करती है, तो सोचती है उसकी तिरछी हुई बिंदी कोई सीधी कर जाए, कभी जुल्फों से वो क्लिप खोलता जाए, कभी गजरे सजाता जाए। कभी उसी के काजल के कोर से हल्का सा काजल लेकर उसके गर्दन पर लगा दे कि किसी की नज़र ना लगे। कभी चूड़ी की खनक सुनकर वो बांह पकड़ ले, कभी पायल की आवाज़ उसके मुस्कुराहट की वजह बने और कभी हौले से साड़ी का जब वो सिरा टकराए तो उसके होश उड़ जाएं। अनगिनत ऐसी छोटी छोटी उम्मीदें उसके जीने की वजह होती हैं। स्त्री बेहद सरल बेहद सादी होती है। निरुपमा(19.8.2023)

बस यूं ही ....

अपना अपना दर्द था,अपनी अपनी शिकायते, कभी वो मुंह फेरकर चल दिए, कभी मैने नज़र झुकाकर काम लिया। बरसों से सुलगते तन मन को, बस पल भर का आराम मिला, जब मैंने नजर उठाई तो, ठीक सामने उसका सामान मिला। था दर्द दिलों में सदियों का, थीं रूह भी प्यासी प्यासी सी, उसने जो पलटकर देखा मुझे, मेरे दिल को ज़रा आराम मिला, अब बीत चुकी थी यादें भी और गुज़र गया था हर लम्हा, उस बंद गली के मोड़ पे फिर, ये किसका पड़ा सामान मिला, हर नक्श मिटाकर बैठी थी, मैं दिए बुझाकर बैठी थी, मुझको मेरे ही पहलू में, कोई किस्सा यूं अनजान मिला, बरसों से सुलगते तन मन को, बस पल भर का आराम मिला, निरुपमा (4.8.2023)

क्यूं हैं, पता नहीं!

 हम दोनो दूर हैं बहोत, क्यूं हैं, पता नहीं! हम दोनो पास थे कभी, क्यूं थे, पता नहीं! रस्ता तुम्हारा छोड़ आए हम,  रुख एक दूसरे से मोड़ आए हम, दिल के हर अरमान कुचल डाले अपने हाथों से, डूबता छोड़ आए माज़ी को अपने हाथों से, दिल अब भी बेकरार है, क्यूं है, पता नहीं। निरुपमा (28.7.23)

withdrawal....

 Its a withdrawal from a love relationship,  from a journey of warmth, of love, from unnecessary emotional breakdowns, From tears of happiness tears of sorrows. It's a withdrawal from own happiness, own smile, a dream of togetherness. It's a withdrawal from you, from my breathe, from my heart beat, from my life. It's a love withdrawal, withdrawal from life. Nirupama (8/7/2023)

बस यूं ही.....

और चलते चलते कदम ठिठक कर ठहर जाते हैं, जैसे आवाज़ कोई सुनी हो तुम्हारी,  जैसे झलक दिख जाए कहीं।  जैसे शोर के बीच सुकून की वो निगाह पड़ी हो मुझपर,  जैसे हौले से हाथ पकड़कर मेरी पेशानी पर एक बोसा रखा हो तुमने। के जब कि मुझको भी ये ख़बर है के तुम नहीं हो, कहीं नहीं हो, पर ये दिल कह रहा है, तुम यहीं हो... यहीं कहीं हो।। निरुपमा (14.5.23)