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Showing posts from September, 2022

एक मुलाक़ात ....

 न हाथ थामा, न नजरें मिलाई, न गिले किए, न शिकवे को दरकिनार किया। अपने-अपने अना की बात थी, वो भी ख़ामोश रहे हम भी खामोश रहे। निरुपमा (27.9.2022) अना (गुरूर) self respect...

माज़ी ....

 धीरे... और धीरे... दूरियां बढ़ती, और बढ़ती गईं... उसकी नज़र के धोके से और धोखे खाती रही। वक्त के मरहम भी अब काम आते नहीं। धीमे और धीमे फिसलता गया वक्त मेरे हाथ से। शांत अंतर्मन, चंचलता की पराकाष्ठा तक पहुंचा, फिर शांत और शांत हो गया। ये शांति चिटियों सी रेंगती मेरे हाथ पैर, कान, आंख से शरीर और शरीर से मन तक आ पहुंची। एक "हाय" की रट लगाता मेरा माज़ी, मेरे सामने आकर खड़ा हो गया। मैने देखा उसको, माथे पर बोसे दिए,  और पानी में तैरते कागज़ के नाव की मानिंद हाथ फेरकर उसे रवाना किया। निरुपमा (13.9.2022 )