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बही खाता खोल दूं मैं भी अपनी शिकायतों की, तो बोलो तुम क्या करोगे?

 बही खाता खोल दूं मैं भी अपनी शिकायतों की, तो बोलो तुम क्या करोगे?
गुज़रे हुए लम्हों में जो बरसों की दफ्न यादें हैं,
यादों में गहरे ज़ख्म हैं, ज़ख्मों पर परी परतें हैं।
उन ज़ख्मों से परतों को गर हटा दूं, तो बोलो तुम क्या करोगे?
बही खाता खोल दूं मैं भी अपनी शिकायतों की तो बोलो तुम क्या करोगे?
तुमने मुझे छोड़ा था, मेरे सबसे बुरे वक्त में,
जब तन्हाई बना साथी और आंसू बने श्रृंगार
उस साथी उस श्रृंगार का तुमसे नाता जोड़ दूं, तो बोलो तुम क्या करोगे?
बही खाता खोल दूं मैं भी अपनी शिकायतों की तो बोलो तुम क्या करोगे?
निरुपमा (5.2.24)

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