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Showing posts from 2025

शायद ख़ुद की तलाश में।

          आज फ़िर अकेलेपन ने घेर लिया मुझको, सांसों के लय में कोई समानता नहीं, इसके सुर-ताल बिगड़े हुए हैं। ये धड़कने मेरे कानों तक पहोचकर कोहराम मचाए हों जैसे। एक थकावट चारों ओर से घेरे हुए है, हाथ पैर हिलते नहीं, शरीर जैसे जड़ हुआ जाता है, नज़रें पहरों तक झुकी रहती हैं, एक टकटकी लगाए, पत्थर सी। मैं फ़िर से दौड़ना चाहती हूँ, हंसना चाहती हूँ, खिलखिलाना चाहती हूँ, पर अकेलापन मुझे और भी अधूरा किये जाता है। मालूम नहीं ये क्यूँ है! या शायद मालूम करना भी नहीं चाहती।               उम्र के हर दहलीज़ से गुज़र कर देखा, कई बार रस्ते बदलकर देखा, हर उम्र ने हर रस्ते ने मेरा हाथ थामकर कहा, थम जाओ ज़रा, ठहर कर देखो तो ज़रा ख़ुद को, क्या हाल कर लिया तुमने अपना। एक हल्की सी भीगी पलकों पर मुस्कान लिए, फ़िर से निकल पड़ती हूँ उस राह पर, जाने किसकी तलाश में, शायद ख़ुद की तलाश में।  निरुपमा (2/6/25) 

The Solitude

एक संपूर्ण जीवन, एक एक पल, एक एक दिन की पैदाइश होती है दिन सुलझा हुआ आता है सामने,  जब सुबह सकारात्मक होती है,  सुबह की सकारात्मकता,  हमारे मन के स्वस्थ्य पर आधारित होता है,  हम जितने अकेले होते जाते हैं, उतने गहरे तैरते हैं ख़ुद में,  किसी का साथ होना, बाह्य रूप से ख़ुद से जुड़ना है,  पर अकेले होना, आंतरिक रूप से ख़ुद से जुड़ना,  निरुपमा (10/4/2025)