प्यार मुझको हुआ तुमसे, तुमको मुझसे हो न हो, ये बात तुमपर रख छोड़ी है। वक़्त मिलता रहा, तुम भी मिलते रहे, वक़्त जाता रहा, अब तुम मिलो न मिलो, ये बात भी तुमपर रख छोड़ी है। सेंकड़ों की राह में, एक राह तुमसे मिली, मैं अनवरत चल रही थी और बस ठहर गयी। तुम भी ठहर जाओ, ये मैं तुमसे कैसे कहूँ, अब तुम ठहरो न ठहरो ये बात भी तुमपर रख छोड़ी है। गुज़रे सालों में इस दिल में ढेरों शिक़ायते रही, शिक़ायतों को जानने पर बस एक तुम्हारा ही इख़्तियार रहा। अब चाहो तो दूर दूर रहो, तुम कुछ सुनो न सुनो, ये बात भी तुमपर रख छोड़ी है। दिल ने सलीके से बुने थे ख़ाब अपने, हर ख़ाब की तामील पर, इक तुम्हारा ही इख़्तियार रहा। मैं अब भी तुम्हारी हूँ, तुम मेरे हो के नही, ये बात भी, बस तुम पर ही रख छोड़ी है। निरुपमा (15.2.24)