बस इतना ही बहोत है के तुझे मैं याद हूँ अबतक , मैंने कब चाहा , मैं तेरा जुनूं बन जाऊं , तेरी ज़िन्दगी तेरा सुकूं बन जाऊं , तेरी पलकें खुलें तो हर तरफ तू ढूंढें मुझे , अपने हर एक पल में मुझको तू पुकारा करे , तेरी सुबह में तेरी शामों में फ़िक्र मेरा हो , और ज़िक्र सिर्फ़ मेरा हो , बस इतना ही बहोत है के तुझे मैं याद हूँ अबतक , हर घड़ी दिल बेचैन सा रहता था , लोगों का साथ जैसे हर पल डसता था , अकेलेपन में अब सुकूं मिलने लगा था , माज़ी का ज़ख्म भी भरने लगा था , फ़िर भी न जाने क्यूँ , कदम बढ़ते नहीं थे , तुझे खोने के दर्द से उबरते नहीं थे , जैसे दिल पर कोई बोझ लिए बैठे रहे , तेरे बिन..... तेरे संग संग जीते रहे , एक रोज़ जाने किसकी आवाज़ मुझको आई थी , जैसे मेरे ही ‘मैं’ ने मुझको आवाज़ लगाईं थी , कुछ अनमने से ढंग से मेरा दर्द मुझसे टकरा गया , तू सामने आया और.... सब याद आ गया , तेरी नज़रें तेरी पलकें, तेरी आवाज़ में ज़िन्दगी पायी थी , एक तेरे जाने से मैंने पूरी ज़िन्दगी गवाई थी , आज फ़िर रूठी हुई दास्ताँ याद आने लगी , गुज़रे लम्हे की तपिश फ़िर से जलाने ल...
ज़िन्दगी के सफहों को पलटते हुए, कुछ ख़ास पल जैसे हाथ पकड़कर रोक लेना चाहते हैं!