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Showing posts from June, 2019

नील..

उसने किताब के पन्नो के बीच से गुलाब की कुछ सूखी पंखुड़िया निकाली , एक पुराना सिगरेट का डब्बा , एक रुमाल , चॉकलेट्स के कुछ पुराने रैपेर्स , एक कलम टूटा हुआ और...   और कुछ ख़त... इन सब को इकठ्ठा कर वो उस से मिलने गयी , और लिफाफा पकड़ाते हुए कहा , “अब तुम्हारा कुछ भी नहीं जो मेरे पास रह गया हो , अब जो है वो सीर्फ मेरा है” , कुछ देर ठहर कर फ़िर उसने कहा... “कितनी बेवकूफ थी न मैं , इन सब सामानों को इकठ्ठा करती रही, तुम्हारे प्यार की निशानी समझती रही , कि जबकि प्यार तुम्हे कभी था ही नहीं... प्यार.. तुम्हे कभी हुआ ही नहीं, खैर.. शिक़ायत तो अपनों से की जाती है , और तुम तो ग़ैर भी नहीं.. सुनो ..जब मेरी आँखें बंद होंगी , तब भी यदि तुम आये मेरी आखिरी झलक देखने , तो ख़याल रहे तुम्हारी आँखें नम न हो , जिस समाज जिस दुनिया के लिए तुमने मुझे छोड़ा, कहीं उनकी नज़र में तुम गुनहगार न बन जाओ.. ‘नील के पिता का नाम .. आज भी कोई नहीं जानता’ अमन अपलक आस्था को देखता रहा , आस्था भारी क़दमों से सुनसान रस्ते पर नज़रें झुकाए जा रही थी.... ...निरुपमा ( 17.6.19)