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Showing posts from August, 2019

बियाबां

एक बहोत लम्बा सा रस्ता है, एक बहोत गहरी सी खाई है, एक गली है उबड़ खाबड़ सी, एक नदी है थोड़ी पगली सी, क्यूँ हवा यूँ आज मद्धम है, आँखों की बरसात भी कम है, क्या कहूँ वो कैसा सपना था , छूटा जो, बस वो ही अपना था , आज दिल क्यूँ सहमा सहमा है , क्या इसे कुछ और कहना है! लाज़मी होती नहीं हर एक वफ़ा, तोड़नी पर जाए गर अहद-ए-वफ़ा, टूट जाता है कोई फ़िर साथ में , सिसके फ़िर तन्हाईयाँ हर रात में | ख़ाब देखे थे कभी जो साथ में, उनका दामन छूटता लगता है क्यूँ , तुम जो अपने साथ थे सब ठीक था , अब बियाबां चारसू लगता है क्यूँ | निरुपमा ( 6.8.19)

चंद अशआर...

ना हाथ थामा, ना मुस्कुराए न पूछा दिल का हाल , दस्तूर-ए-इश्क था वो भी खामोश रहे , हम भी खामोश रहे | एक पूरी सदी गुज़री तुझतक पहोचने में, सामने आये तो कुछ भी कहना मुश्किल रहा | किस तरह छुप छुप कर हम उनका दीदार करते हैं , बातें किसी और से, नज़रे किसी और पर , और इश्क हम उनसे करते हैं | ....निरुपमा ( 4.8.19)

थोड़ा सा रूमानी...

धीमी धीमी सी सांस , हल्की हल्की आवाज़ , ज़रा सी बदन की आहट, मद्धम सी रौशनी , खुशबू तुम्हारी हवाओं में, गुलाबी से शाम के आँचल से , उगती हुई सी रात , रात की ठंडक, झीनी सी चादर, सौंधी सी बारिश, पत्तों की सरसराहट , और तुम...और मैं.. ...निरुपमा ( 3.8.19)