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Showing posts from April, 2020

मेरे शब्दों से तुम कोई रिश्ता न बुन लेना।

मेरे शब्दों से तुम कोई रिश्ता न बुन लेना। कि मेरे शब्द, शब्द मात्र हैं। इनमें छिपा कोई अर्थ नही, न प्रेम न  अलगाव, न पीड़ा, न सबलता न दुर्बलता, न छिपे हैं मेरे आंसू, न छिपी है कोई ज्वाला ही, ये शब्द, शब्द मात्र हैं। कि दरकार नहीं किसी की इन शब्दों को, शब्द मेरे कुछ ऐसे हैं, जिनमें बचे कोई एहसास नहीं। ये कविता नहीं, ये कोई कहानी नहीं। न किसी नारी की पीड़ा है, न प्रेम न वियोग। ये शब्द मात्र शब्द हैं, इनका होना मेरे होने का प्रमाण नहीं। इनका न होना मेरे जीवन का अंत नहीं। ये शब्द मात्र शब्द हैं, मेरे शब्दों से तुम कोई रिश्ता न बुन लेना। निरुपमा(24.4.20)

शायद प्यार

न सुकून अब कहीं, न चैन - ओ- क़रार कहीं, हुआ न हो इस दिल को किसी से कोई प्यार कहीं। गमों की साज़िश थी, मेरा लुटता गया क़रार कहीं, उन्हीं की पलकों तले नींद आए एक बार कहीं। मेरा ये होश अब और मेरे साथ क्या रहता, गया ये होश मेरा उनके साथ साथ कहीं। वो तेरे साथ हैं, अब हैं, या के वो हैं भी नहीं, सिसकती रात ने पूछा है बार बार यही। वो जो आएं तो इस बार जाने पाए ना, मेरे मैं ने मुझे कहा है बार बार यही। निरुपमा (23.4.20)