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Showing posts from December, 2019

कुछ भी नहीं चाहिए...

कभी यूँ भी होता है , कि खुद को भी मालूम नहीं होता , के ये क्या हो रहा है! इल्म होता है तो बस इतना , कि कुछ ठीक नहीं...जो हो रहा है , आवाज़..खामोशी में तब्दील हो जाती है , पर अन्दर जैसे असंख्य रूद्र वीणाएं बज रही हो, वो मन है , दिल है , या धड़कन है कोई , छू नहीं पाती ठीक से , अपने खुद के वजूद को , एक शोर है , बस इस बात की, कि नहीं चाहिए , ये सब...वो सब ...कुछ भी नहीं चाहिए , या तो तुम...या तो कुछ भी नहीं... न शख्स कोई , न आवाज़ कोई , न ज़िन्दगी कोई... निरुपमा ( 30.12.19)

‘मैं तुमसे नहीं...अब भी उस से प्यार करता हूँ....”

उन नज़रों के बेगानेपन से दिल बेतहाशा फूट पड़ा , सामने पड़ी उसकी तस्वीर पर जैसे वक़्त की गर्द चढ़ गयी हो, वो सोचती रही , क्यूँकर उसने उन नज़रों पर  भरोसा  कर लिया , और सोचती रही , के देखते देखते किस तरह एक पूरा साल गुज़र गया, पर वो न लौटा... पर वो न लौटा , और लौटा भी तो कुछ यूँ के जैसे वो उसकी कुछ भी नहीं , कोई नहीं... तमाम उम्र की सारी दौलत जैसे एक पल में लुट गयी हो, जब उसने कहा ‘मैं तुमसे नहीं...अब भी उस से प्यार करता हूँ....” ....निरुपमा ( 16.12.19)