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Showing posts from January, 2022

आरज़ू....

उसको पाने की शायद उम्मीद थी कोई, बरहां राह तका करते थे, उसकी बातें, उसकी आवाज़ उसकी बेबाक अदा, रात दिन याद किया करते थे। एक एक सांस उसके नाम किया, क्या कहें कितना प्यार करते थे। अब तो आलम है, शाम से पहले, याद चरागों की जला लेते हैं, वो लौट आए एक बार फिर कभी, इस आरज़ू में जिए जाते हैं। निरुपमा (21.1.22)

बर्बाद....

 ज़रा सा बचपना था अक्सर, ज़रा पागल वक्त कर गया। मुझको मेरा ख्याल रखना था, मैने खुद को बर्बाद कर दिया। निरुपमा(20.1.21)

आलापेर भाषा, आदोरेर भाषा, श्वोपनेर भाषा।

तोमर भाषा शीखे, आमी आर ऐकटा भाषा शीखेनीलाम, आलापेर भाषा, आदोरेर भाषा, श्वोपनेर भाषा। तुमि ऐक बारी आमाके बोले छिले, आमी तोमार शुधु तोमारी आछी, तोमारी थाकबो शेई बोला तोमार कोथा, आमी हृदोए माझे रेखे छी, आर आमी जानी ना, कोनो लोकेर भाषा, आर आमी जानी ना कोनो ओन्नो गान शुधू तोमार तान, शुधू तोमार भाषा। आदोरेरभाषा तोमार आलापेर भाषा निरुपमा(18.1.22)

लाज़मी नही कुछ भी....

लाज़मी नही कुछ भी.... न आरज़ू, न इश्क़, न छुअन, न चुभन। लाज़मी नही कुछ भी..... न तसव्वुर, न ख़्वाब, न थकन न टुटन। लाज़मी नही कुछ भी,  न तुम, न मैं, न वहशत, न तकमील। निरुपमा(18.01.2022)