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Showing posts from August, 2020

आंसू..,..

टपके थे बारिशों के बीच, कुछ बूंद मेरे गालों पर, ज़रा सा चख के देखा था, नमकीन सा तेरा प्यार, मेरी पलकों से हो के आया था।। निरुपमा(31.8.20)

कुछ भी नहीं ठहरता..,

 कुछ भी नहीं ठहरता, न दिन न रात, न हवा न पानी, न मौसम न बरसात, न खुशबू न रंग, न दर्द न घुटन, न प्यार न नफ़रत, न शिकवे न गिले, न ग़म न उदासी, न मौन न चीख, और जान...... हम भी कहां ठहरेंगे न तुम न हम। निरुपमा(27.8.20)

प्रेम

रोकने से कुछ ठहरता है क्या! जिस तरह बाँध को तोड़कर नदी की धारा , उसे पार करने के लिए , अपने सागर से मिलने के लिए , व्याकुल रहती है.. ठीक उसी तरह, प्रेम में दोनों ही विवश होते हैं , प्रेम को बाँधने की कोशिश करना, असहज , असंभव प्रयास है... निरुपमा ( 26.8.20)

तू..........

 इक तेरी गली को छोड़कर हर गली से मैं गुज़रती हूं। हर गली का आख़िरी मकां तेरा होता हैं। तेरी याद को छोड़कर, हर ख़याल पर मैं चलती हूं, हर ख़याल का आख़िर वो ख़याल तेरा होता है। तुझे भुलाकर हर सुबह बहुत दूर दौड़ आती हूं। हर दौड़ का आख़िरी पड़ाव तू ही होता है। निरुपमा (24.8.20)

सच.....

 एक चेहरे की तलाश ने कितने चेहरों से रू - ब- रू करा दिया, बस एक गलतफहमी, और सारा सच सामने आ गया, वो फरेब- ए- यार था, दिलकश थी जिसकी हर अदा, उस फरेब- ए- यार का, हर सच सामने आ गया। कितने सजदे, कितने वादे, थे मेरे दिल ने किए, इस नासमझ नादां का, हर एक सच सामने आ गया। कोई नहीं मैं उसकी, वो था नहीं कोई मेरा, जिसके थे सब, उन सबों में कोई न थी मेरी जगह, एक बात पर हर बात का सच सामने आ गया। बस एक गलतफहमी, और सारा सच सामने आ गया।। निरुपमा (20.8.20)

मुफ़लिसी.......

हमें मुफ़लिसी ने क्या क्या सिखा दिया है, तुम्हे भी शायद हमने भूला दिया है। ग़म- ए- दिल रखा पड़ा था पहलू में, उसे भी थपकी दे कर सुला दिया है। निरुपमा(19.8.20)

प्यास

जाने ये कैसी तलाश है जो कभी ख़त्म नहीं होती, जैसे उम्र भर की प्यास है... जो कभी ख़त्म नहीं होती। ..... निरुपमा(18.8.20)

ठहरा सा है.....

 उसने ख़ुद ही ख़ुद को मुझसे दूर कर लिया, कि वो जानता था, ठीक क्या ग़लत है क्या, कि वो जानता था, वो एहसास जो उसके लिए अनमोल है, वो सबके लिए बेमानी है, कि वो जानता था, प्यार अमर है और मन छलावा, उसने खुद ही अपने दोनो हाथों से, अपने मन का गला घोट दिया, एक हल्की सी मुस्कान के साथ उसने कुछ यूं किनारा किया, कि वो जाकर भी मुझमें ठहरा सा है, जैसे पुराना कोई ज़ख्म आज भी कुछ गहरा सा है। निरुपमा (16.8.20)

इश्क़

 जब छूट जाए दामन अपने प्यार का,  जब भूल जाए रस्ता अपने यार का, जब कहने को हज़ार बात ना रहें, जब दिल दिमाग आपने बस में ना रहे, जब थकती हुईं आंखें पथ से ना हटे, जब मौसम- ए- बरसात असर ना करे, जब दिल की बात दिल में रखनी सीख लें, जब अपना हाल खुद से भी छिपाना हो, जब औरों की कोई बात भली ना लगे, जब उसकी याद दिल से ज़रा ना टले, जब रात दिन बोझ सा लगने लगे, जब बार बार तन्हाई तुम्हे खीच ले, जब सांस सांस बोझ सी लगने लगे, तब जानना तुम अपने ख़ुद से दूर हो, तब जानना तुम इश्क़ में मजबूर हो, तब जानना कोई तुम्हारा है कहीं, जिसके बिना ये खूबसूरत ज़िन्दगी, बेवजह है,बेमानी है, बेनाम है, तब जानना कि इश्क़ ही ख़ुदा भी है, बिन इश्क़ जीना बस कोई हराम है। निरुपमा(16.8.20)

ये तो मज़ाक था....

 इन पलकों के पीछे आंसू छिपा लेते हैं, कोई जान नही पाता, हम यूं मुस्कुरा लेते हैं। हर बात पर कहते हैं, ये तो मज़ाक था, हाल- ए- दिल अक्सर... कुछ यूं छिपा लेते है। निरुपमा(14.8.20)