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प्रेम

रोकने से कुछ ठहरता है क्या!

जिस तरह बाँध को तोड़कर नदी की धारा,

उसे पार करने के लिए,

अपने सागर से मिलने के लिए,

व्याकुल रहती है..

ठीक उसी तरह,

प्रेम में दोनों ही विवश होते हैं,

प्रेम को बाँधने की कोशिश करना,

असहज, असंभव प्रयास है...

निरुपमा (26.8.20)

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