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Showing posts from March, 2019

अनजानापन

कुछ भी बदलता तो नहीं , बस..कोई और भी होता है आसपास , जो रहता है वहीँ कहीं, जहां मैं होती हूँ , मेरे बाहर बाहर वो टहलता है , मुझे खुश करने के बहाने ढूंढता है वो,  चलते फ़िरते मेरी पलकों में झाँक लेता है , और ढूंढता है खुद को, पलकें गीली , और आँखें सूखी बंज़र ज़मीन सी , एक साथ रहकर भी , आस पास होकर भी , जब एक लम्बी सी खाई उसे हमारे दरमियाँ नज़र आती है , तो देख लेता है आइना , सोचता है , शायद... शायद ‘उसमें’ ही कोई कमी होगी , जो बरसों बाद भी हमारे बीच एक अनजानापन है , हम दोनों एक दूसरे के लिए अजनबी हैं , मैंने कई बार चाहा , कि कह दूँ उसे , उसमें कोई कमी नहीं , कमी मुझमें है , कि मुझमें मेरा ‘मैं ’ नहीं , मेरा ‘मैं’ तो कहीं.. मैं तुममे छोड़ आई हूँ....बरसों पहले.. निरुपमा (25.1.20 )