कुछ भी नहीं ठहरता,
न दिन न रात,
न हवा न पानी,
न मौसम न बरसात,
न खुशबू न रंग,
न दर्द न घुटन,
न प्यार न नफ़रत,
न शिकवे न गिले,
न ग़म न उदासी,
न मौन न चीख,
और जान......
हम भी कहां ठहरेंगे
न तुम न हम।
निरुपमा(27.8.20)
ज़िन्दगी के सफहों को पलटते हुए, कुछ ख़ास पल जैसे हाथ पकड़कर रोक लेना चाहते हैं!
कुछ भी नहीं ठहरता,
न दिन न रात,
न हवा न पानी,
न मौसम न बरसात,
न खुशबू न रंग,
न दर्द न घुटन,
न प्यार न नफ़रत,
न शिकवे न गिले,
न ग़म न उदासी,
न मौन न चीख,
और जान......
हम भी कहां ठहरेंगे
न तुम न हम।
निरुपमा(27.8.20)
Comments
Post a Comment