उसने ख़ुद ही ख़ुद को मुझसे दूर कर लिया,
कि वो जानता था,
ठीक क्या ग़लत है क्या,
कि वो जानता था,
वो एहसास जो उसके लिए अनमोल है,
वो सबके लिए बेमानी है,
कि वो जानता था,
प्यार अमर है और मन छलावा,
उसने खुद ही अपने दोनो हाथों से,
अपने मन का गला घोट दिया,
एक हल्की सी मुस्कान के साथ
उसने कुछ यूं किनारा किया,
कि वो जाकर भी मुझमें ठहरा सा है,
जैसे पुराना कोई ज़ख्म आज भी कुछ गहरा सा है।
निरुपमा (16.8.20)
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