कितने करते गिले शिकवे, सो बस अब जाने दिया।
उसको उसके लिए ख़ुद से दूर बस जाने दिया।
ख़ाक में मिलना था एक रोज़ इस मोहब्बत को, तो आज क्यूँ नही,
उसके लिए और कितना तड़पते, सो बस अब जाने दिया।
इश्क़ कभी था उसको, इस बात का यकीं क्यूँकर करें,
नफरतों की आंधी में सुलगना था सो सुलगते रहे,
उसकी नज़र के बेगानेपन को जिया है एक उम्र तलक,
इस दर्द को मैंने सहा, और सहन कितना करें!
ज़ख़्म अब नासूर बना, सो उसे जाने दिया।
क्यूँ पूछते हो हाल मेरा, सच कहना मुश्किल होगा,
झूठ और कितना कहें सो इस बात को भी जाने दिया।
निरुपमा(11.04.2024)
ख़ाक में मिलना था एक रोज़ इस मोहब्बत को, तो आज क्यूँ नही,
उसके लिए और कितना तड़पते, सो बस अब जाने दिया।
इश्क़ कभी था उसको, इस बात का यकीं क्यूँकर करें,
नफरतों की आंधी में सुलगना था सो सुलगते रहे,
उसकी नज़र के बेगानेपन को जिया है एक उम्र तलक,
इस दर्द को मैंने सहा, और सहन कितना करें!
ज़ख़्म अब नासूर बना, सो उसे जाने दिया।
क्यूँ पूछते हो हाल मेरा, सच कहना मुश्किल होगा,
झूठ और कितना कहें सो इस बात को भी जाने दिया।
निरुपमा(11.04.2024)
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