इक तेरी गली को छोड़कर हर गली से मैं गुज़रती हूं।
हर गली का आख़िरी मकां तेरा होता हैं।
तेरी याद को छोड़कर, हर ख़याल पर मैं चलती हूं,
हर ख़याल का आख़िर वो ख़याल तेरा होता है।
तुझे भुलाकर हर सुबह बहुत दूर दौड़ आती हूं।
हर दौड़ का आख़िरी पड़ाव तू ही होता है।
निरुपमा (24.8.20)
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