न सुकून अब कहीं, न चैन - ओ- क़रार कहीं,
हुआ न हो इस दिल को किसी से कोई प्यार कहीं।
गमों की साज़िश थी, मेरा लुटता गया क़रार कहीं,
उन्हीं की पलकों तले नींद आए एक बार कहीं।
मेरा ये होश अब और मेरे साथ क्या रहता,
गया ये होश मेरा उनके साथ साथ कहीं।
वो तेरे साथ हैं, अब हैं, या के वो हैं भी नहीं,
सिसकती रात ने पूछा है बार बार यही।
वो जो आएं तो इस बार जाने पाए ना,
मेरे मैं ने मुझे कहा है बार बार यही।
निरुपमा (23.4.20)
हुआ न हो इस दिल को किसी से कोई प्यार कहीं।
गमों की साज़िश थी, मेरा लुटता गया क़रार कहीं,
उन्हीं की पलकों तले नींद आए एक बार कहीं।
मेरा ये होश अब और मेरे साथ क्या रहता,
गया ये होश मेरा उनके साथ साथ कहीं।
वो तेरे साथ हैं, अब हैं, या के वो हैं भी नहीं,
सिसकती रात ने पूछा है बार बार यही।
वो जो आएं तो इस बार जाने पाए ना,
मेरे मैं ने मुझे कहा है बार बार यही।
निरुपमा (23.4.20)
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