ना हाथ थामा, ना मुस्कुराए न पूछा दिल का हाल,
दस्तूर-ए-इश्क था वो भी खामोश रहे, हम भी खामोश
रहे |
एक पूरी सदी गुज़री तुझतक पहोचने में,
सामने आये तो कुछ भी कहना मुश्किल रहा |
किस तरह छुप छुप कर हम उनका दीदार करते हैं,
बातें किसी और से, नज़रे किसी और पर,
और इश्क हम उनसे करते हैं |
....निरुपमा (4.8.19)
Comments
Post a Comment