चलो कुछ रोज़ के लिए तुम्हे अब छोड़ देते हैं कुछ रोज़ तुम हमसे यूँही दूर दूर रहो , कुछ रोज़ नज़रों में बेगानापन रहे , कुछ रोज़ बेताल्लुकी में दिन कटें, कुछ रोज़ बेबसी में आंसू बहें , चलो कुछ रोज़ के लिए तुम्हे अब छोड़ देते हैं कुछ रोज़ दिन को दिन , रात को रात समझो , कुछ रोज़ हमें भूलने की कोशिश करो , कुछ रोज़ तुम जानो के हमारी ज़ात बेईमान थी , कुछ रोज़ के लिए तुमसे हर ताल्लुक तोड़ देते हैं , चलो कुछ रोज़ के लिए तुम्हे अब छोड़ देते हैं और करते हैं इंतज़ार कि कभी वो दिन भी आएगा , दर्द मुझे होगी , और दिल तेरा घबराएगा , देर शाम रात ढले , तू चैन कहाँ पाएगा , उस पल तक हर भरम हम तोड़ देते हैं , चलो कुछ रोज़ के लिए तुम्हे अब छोड़ देते हैं पर इतना याद रखना , के वक्त गुज़र न पाएगा , वक़्त बेवक्त हर शख्स तुझे मेरी ही याद दिलाएगा , है यकीं इस दफ़े तू फ़िर से लौट आएगा , फिलहाल के लिए ये सब यहीं कहीं छोड़ देते हैं , चलो हम कुछ रोज़ के लिए तुम्हे अब छोड़ देते हैं .....निरुपमा ( 25.2.20)
ज़िन्दगी के सफहों को पलटते हुए, कुछ ख़ास पल जैसे हाथ पकड़कर रोक लेना चाहते हैं!