हिचकियां राज़ थी उसकी, मैंने अब जाना... आज बेपर्दा हुआ महबूब का हर मनसूबा निरुपमा (27.5.21)
ज़िन्दगी के सफहों को पलटते हुए, कुछ ख़ास पल जैसे हाथ पकड़कर रोक लेना चाहते हैं!
ज़िन्दगी के सफहों को पलटते हुए, कुछ ख़ास पल जैसे हाथ पकड़कर रोक लेना चाहते हैं!