बात, जो निकली तुम से पहोची मुझ तक, उस पल सुना था सबकुछ.. सब ने, चेहरे ने, मुस्कुराहट ने, आंसुओं ने, जिस्म से रूह की परतों ने। मुस्कुराकर बस इतना ही कह सकी थी..... "ना.... तुम बोलो, मुझे बुरा नहीं लग रहा।" पर वो शब्द float करते रहे बरसों, तुम्हारी आवाज़ गूंजती रही, मेरे कान से लहू निकलता रहा। निरुपमा(2.6.2022)
ज़िन्दगी के सफहों को पलटते हुए, कुछ ख़ास पल जैसे हाथ पकड़कर रोक लेना चाहते हैं!