एक बहोत लम्बा सा रस्ता है, एक बहोत गहरी सी खाई है, एक गली है उबड़ खाबड़ सी, एक नदी है थोड़ी पगली सी, क्यूँ हवा यूँ आज मद्धम है, आँखों की बरसात भी कम है, क्या कहूँ वो कैसा सपना था , छूटा जो, बस वो ही अपना था , आज दिल क्यूँ सहमा सहमा है , क्या इसे कुछ और कहना है! लाज़मी होती नहीं हर एक वफ़ा, तोड़नी पर जाए गर अहद-ए-वफ़ा, टूट जाता है कोई फ़िर साथ में , सिसके फ़िर तन्हाईयाँ हर रात में | ख़ाब देखे थे कभी जो साथ में, उनका दामन छूटता लगता है क्यूँ , तुम जो अपने साथ थे सब ठीक था , अब बियाबां चारसू लगता है क्यूँ | निरुपमा ( 6.8.19)
ज़िन्दगी के सफहों को पलटते हुए, कुछ ख़ास पल जैसे हाथ पकड़कर रोक लेना चाहते हैं!