मेरे शब्दों से तुम कोई रिश्ता न बुन लेना। कि मेरे शब्द, शब्द मात्र हैं। इनमें छिपा कोई अर्थ नही, न प्रेम न अलगाव, न पीड़ा, न सबलता न दुर्बलता, न छिपे हैं मेरे आंसू, न छिपी है कोई ज्वाला ही, ये शब्द, शब्द मात्र हैं। कि दरकार नहीं किसी की इन शब्दों को, शब्द मेरे कुछ ऐसे हैं, जिनमें बचे कोई एहसास नहीं। ये कविता नहीं, ये कोई कहानी नहीं। न किसी नारी की पीड़ा है, न प्रेम न वियोग। ये शब्द मात्र शब्द हैं, इनका होना मेरे होने का प्रमाण नहीं। इनका न होना मेरे जीवन का अंत नहीं। ये शब्द मात्र शब्द हैं, मेरे शब्दों से तुम कोई रिश्ता न बुन लेना। निरुपमा(24.4.20)
ज़िन्दगी के सफहों को पलटते हुए, कुछ ख़ास पल जैसे हाथ पकड़कर रोक लेना चाहते हैं!