उसको पाने की शायद उम्मीद थी कोई, बरहां राह तका करते थे, उसकी बातें, उसकी आवाज़ उसकी बेबाक अदा, रात दिन याद किया करते थे। एक एक सांस उसके नाम किया, क्या कहें कितना प्यार करते थे। अब तो आलम है, शाम से पहले, याद चरागों की जला लेते हैं, वो लौट आए एक बार फिर कभी, इस आरज़ू में जिए जाते हैं। निरुपमा (21.1.22)
ज़िन्दगी के सफहों को पलटते हुए, कुछ ख़ास पल जैसे हाथ पकड़कर रोक लेना चाहते हैं!