ज़िन्दगी को पर लग गए जैसे,
उड़ चली वो वक़्त के हर दहलीज़ को लांघते,
उड़ चली वो वक़्त के हर दहलीज़ को लांघते,
मेरा बिखड़ा वजूद आज भी बिखड़ा पड़ा है,
वहीँ, ठीक वहीँ तेरी चौखट पर,
वहीँ, ठीक वहीँ तेरी चौखट पर,
तू आता है, मुझे देखता है,
पर सोचता नहीं,
एक तस्वीर हूँ शायद,
या शायाद कोई साया हूँ,
पर सोचता नहीं,
एक तस्वीर हूँ शायद,
या शायाद कोई साया हूँ,
तू आज भी मुझमें जिंदा है,
पर तुझमें मैं कहाँ हूँ!
वो जो एक रोज़ तूने आवाज़ मुझको लगाईं थी,
पर तुझमें मैं कहाँ हूँ!
वो जो एक रोज़ तूने आवाज़ मुझको लगाईं थी,
उस आवाज़ की शिकन मेरे कानों में चुभने लगी है,
तू है मेरे ही आसपास कहीं आज भी,
तू है मेरे ही आसपास कहीं आज भी,
पर तुझे छूने की नाकाम कोशिशों से अब दिल,
ऊबने लगा है,
थकने लगा है,
टूटने लगा है,
ऊबने लगा है,
थकने लगा है,
टूटने लगा है,
कि सोचती हूँ तुझको,
तो कभी खुद को भी सोच लेती हूँ,
तू कौन है मेरा,
मैं कौन हूँ खुद की!
दर्द तेरा जो मेरी आँखों में उभर आता था,तो कभी खुद को भी सोच लेती हूँ,
तू कौन है मेरा,
मैं कौन हूँ खुद की!
इश्क मेरा...तेरे दिल से मिट गया कैसे??
Comments
Post a Comment