मुमकिन नहीं है वक़्त के रुख को यूँ मोड़ना,
वरना तो क्यूँकर आपसे यूँ फ़ासले होते,
तस्वीर जैसे अनगिनत परतों से घिर गयीं,
वरना तो क्यूँकर पस्त अपने हौसले होते,
तुझसे किये वादों की शमा जलती रही है,
वरना तो क्यूँ न टूटकर हम रो दिए होते,
सुनते थे इश्क तो कई जन्मों का साथ है,
मिलकर बिछड़ने और फ़िर मिलने की बात है,
क़िस्मत में दिल का टूटना पहले से लिखा था,
जो तुम न होते तो कहो किस से गिले होते...
...निरुपमा (14.01.20)
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