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माँ

बुजुर्गों को हँसते हुए देख बहुत अच्छा लगता है, कभी उनसे कोई छोटा सा सवाल करो, और उसका वो बहुत लंबा सा जवाब देते हैं, उस वक़्त उनके चेहरे को देखते हुए उनकी बातें सुनना कुछ अलग सा ही महसूस होता है, माँ कहती हैं ‘अब चलने में तकलीफ होती है, घुटने में दर्द रहता है, आँखों से दिखता भी कम है’ पर जब मुझे ऑफिस आने में देर हो रही होती है तो देखते देखते मेरे लिए टिफिन बना देती हैं, सीर्फ मेरी ख़ुशी के लिए वो चौथे महले तक चढ़ मेरे घर आ जाती है। बचपन में ही मेरी दादी नानी का साया मेरे सिर से उठ गया। इसलिए अनेकों कहानियां सुनाने का जिम्मा मां ने अपने सिर ले लिया। उनकी सुनाई हर कहानी आज भी ज़ुबानी याद है। जाने कितने जप, जाने कितनी पूजा, मां दिन रात आज भी जागकर करती है। जब भी उससे पूछा 'कुछ ला दूं तुम्हारे लिए मां' उसने अक्सर मेरे ही हाथ में कुछ पैसे थमा दिए और कहा 'तू अपने लिए कुछ नहीं करती, अपने लिए ले आ' । मां से जब भी पूछा, ‘माँ, बाबूजी से तुमको कोई शिकायत नहीं?’ तो वो कहती हैं, ‘तुम्हारे बाबूजी ने मुझे तुम जैसी प्यारी बेटियाँ दी, मुझे और क्या चाहिए था!’

कितनी अजीब बात है न, एक औरत जिसका पति बरसों पहले गुज़र चुका  है, वो औरत जो अपने पति को परमेश्वर की तरह पूजती थी।वो उसके बगैर अब भी जीती है, हंसती है, खुश होती है। सिर्फ़ अपने बच्चोंं के लिए।

सच मुझे उसकी हंसी के सामने किसी भी विश्व सुंदरी की मुस्कान फीकी लगती है।
निरुपमा

Comments

  1. आज सुबह माँ पूछ रही थी, "छठ पर गाँव चली जाऊं?" मैंने मना कर दिया, तबियत बिलकुल भी ठीक नहीं है उनकी। अगले साल खुद ले कर जाऊँगा आपको। बस इतना ही कह सका।

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