Skip to main content

बाकी बस मलाल है


छोटे से लम्हे में, पिरो लाये थे तेरे इश्क को,
फ़िर बहोत देर तलक, उन्हें याद हम करते रहे,
जिन लम्हों में खुद को हम वार आये थे तुमपर,
तुम उन्ही लम्हों को खुद से दूर दूर करते रहे,
एक अजब सी धुन थी, जो सीने में बजती रही,
एक अजब नशे में, दिन रात हम खोये रहे,
हम दोनों कल साथ थे, और साथ होंगे अब के बाद,
बस यही ख्याल, दिन रात हम बुनते रहे,
अब आया है होश तो न तुम हो, न वो ख्याल है,
कोई दिल में धुन नहीं, बाकी बस मलाल है,
दो घडी की ज़िन्दगी में साथ क्यूँ मुमकिन नहीं?
उस ख़ुदा के पास क्या मेरे वास्ते कुछ भी नहीं??

Comments

Popular posts from this blog

फैसलों की घड़ी ...

बस, फैसलों की घड़ी थी अब, न वो मेरा था, न मैं ही राह में खड़ी थी अब। अब जो छूटा, सब छूटता चला गया, मैंने भी इस दिल की, कब सुनी थी अब। दिल को कुछ कहना था, कोई नाम गुनगुनाना तो था, दिल की ना सुनूंगी, इस बात पर मैं अड़ी थी अब। तन्हाई की राह, बेहद तन्हा.. बेहद मुश्किल थी मगर, बस इसी राह पर चलने की अपनी ठनी थी अब। निरुपमा (14.12.22)

बस यूं ही ....

अपना अपना दर्द था,अपनी अपनी शिकायते, कभी वो मुंह फेरकर चल दिए, कभी मैने नज़र झुकाकर काम लिया। बरसों से सुलगते तन मन को, बस पल भर का आराम मिला, जब मैंने नजर उठाई तो, ठीक सामने उसका सामान मिला। था दर्द दिलों में सदियों का, थीं रूह भी प्यासी प्यासी सी, उसने जो पलटकर देखा मुझे, मेरे दिल को ज़रा आराम मिला, अब बीत चुकी थी यादें भी और गुज़र गया था हर लम्हा, उस बंद गली के मोड़ पे फिर, ये किसका पड़ा सामान मिला, हर नक्श मिटाकर बैठी थी, मैं दिए बुझाकर बैठी थी, मुझको मेरे ही पहलू में, कोई किस्सा यूं अनजान मिला, बरसों से सुलगते तन मन को, बस पल भर का आराम मिला, निरुपमा (4.8.2023)

कवियों की कल्पनाओं से परे, स्त्री का स्वाभाविक रूप... कुछ यूं.......

स्त्री जब मेहंदी लगाती है, तो वो सोचती है कि उसकी मेहंदी लगी हथेलियों को कोई अपने हाथों में रखकर उनकी खुशबू लेता रहे। जब वो श्रृंगार करती है, तो सोचती है उसकी तिरछी हुई बिंदी कोई सीधी कर जाए, कभी जुल्फों से वो क्लिप खोलता जाए, कभी गजरे सजाता जाए। कभी उसी के काजल के कोर से हल्का सा काजल लेकर उसके गर्दन पर लगा दे कि किसी की नज़र ना लगे। कभी चूड़ी की खनक सुनकर वो बांह पकड़ ले, कभी पायल की आवाज़ उसके मुस्कुराहट की वजह बने और कभी हौले से साड़ी का जब वो सिरा टकराए तो उसके होश उड़ जाएं। अनगिनत ऐसी छोटी छोटी उम्मीदें उसके जीने की वजह होती हैं। स्त्री बेहद सरल बेहद सादी होती है। निरुपमा(19.8.2023)