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बाकी बस मलाल है


छोटे से लम्हे में, पिरो लाये थे तेरे इश्क को,
फ़िर बहोत देर तलक, उन्हें याद हम करते रहे,
जिन लम्हों में खुद को हम वार आये थे तुमपर,
तुम उन्ही लम्हों को खुद से दूर दूर करते रहे,
एक अजब सी धुन थी, जो सीने में बजती रही,
एक अजब नशे में, दिन रात हम खोये रहे,
हम दोनों कल साथ थे, और साथ होंगे अब के बाद,
बस यही ख्याल, दिन रात हम बुनते रहे,
अब आया है होश तो न तुम हो, न वो ख्याल है,
कोई दिल में धुन नहीं, बाकी बस मलाल है,
दो घडी की ज़िन्दगी में साथ क्यूँ मुमकिन नहीं?
उस ख़ुदा के पास क्या मेरे वास्ते कुछ भी नहीं??

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जाने दिया .......

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बही खाता खोल दूं मैं भी अपनी शिकायतों की, तो बोलो तुम क्या करोगे?

 बही खाता खोल दूं मैं भी अपनी शिकायतों की, तो बोलो तुम क्या करोगे? गुज़रे हुए लम्हों में जो बरसों की दफ्न यादें हैं, यादों में गहरे ज़ख्म हैं, ज़ख्मों पर परी परतें हैं। उन ज़ख्मों से परतों को गर हटा दूं, तो बोलो तुम क्या करोगे? बही खाता खोल दूं मैं भी अपनी शिकायतों की तो बोलो तुम क्या करोगे? तुमने मुझे छोड़ा था, मेरे सबसे बुरे वक्त में, जब तन्हाई बना साथी और आंसू बने श्रृंगार उस साथी उस श्रृंगार का तुमसे नाता जोड़ दूं, तो बोलो तुम क्या करोगे? बही खाता खोल दूं मैं भी अपनी शिकायतों की तो बोलो तुम क्या करोगे? निरुपमा (5.2.24)