बंद दरवाज़े पर जब दस्तक पड़ी, तब इश्क़ समझ आया।
जब समझा नहीं कुछ और, तब इश्क़ समझ आया।
दूर से सुनती रही आहट उसके कदमों की,
साहिल पर झूमती रही, सायों को चूमती रही,
बंद आंखों के सहारे थे झिलमिल सपने,
सपनों की डोर टूटी, तब इश्क़ समझ आया,
साहिल पर जब डूबी, तब इश्क़ समझ आया।
निरुपमा (8.2.24)
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