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तुम पर ही रख छोड़ी है....

प्यार मुझको हुआ तुमसे, 
तुमको मुझसे हो न हो, 
ये बात तुमपर रख छोड़ी है। 
वक़्त मिलता रहा, तुम भी मिलते रहे, 
वक़्त जाता रहा, अब तुम मिलो न मिलो, 
ये बात  भी तुमपर रख छोड़ी है। 
सेंकड़ों की राह में, एक राह तुमसे मिली, 
मैं अनवरत चल रही थी और बस ठहर गयी। 
तुम भी ठहर जाओ, ये मैं तुमसे कैसे कहूँ, 
अब तुम ठहरो न ठहरो 
ये बात भी तुमपर रख छोड़ी है। 
गुज़रे सालों में इस दिल में ढेरों शिक़ायते रही, शिक़ायतों को जानने पर बस एक तुम्हारा ही इख़्तियार रहा। 
अब चाहो तो दूर दूर रहो, तुम कुछ सुनो न सुनो, 
ये बात भी तुमपर रख छोड़ी है। 
दिल ने सलीके से बुने थे ख़ाब अपने, हर ख़ाब की तामील पर, इक तुम्हारा ही इख़्तियार रहा। 
मैं अब भी तुम्हारी हूँ, तुम मेरे हो के नही, 
ये बात भी, बस तुम पर ही रख छोड़ी है। 
निरुपमा (15.2.24) 

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जाने दिया .......

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शायद ख़ुद की तलाश में।

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बही खाता खोल दूं मैं भी अपनी शिकायतों की, तो बोलो तुम क्या करोगे?

 बही खाता खोल दूं मैं भी अपनी शिकायतों की, तो बोलो तुम क्या करोगे? गुज़रे हुए लम्हों में जो बरसों की दफ्न यादें हैं, यादों में गहरे ज़ख्म हैं, ज़ख्मों पर परी परतें हैं। उन ज़ख्मों से परतों को गर हटा दूं, तो बोलो तुम क्या करोगे? बही खाता खोल दूं मैं भी अपनी शिकायतों की तो बोलो तुम क्या करोगे? तुमने मुझे छोड़ा था, मेरे सबसे बुरे वक्त में, जब तन्हाई बना साथी और आंसू बने श्रृंगार उस साथी उस श्रृंगार का तुमसे नाता जोड़ दूं, तो बोलो तुम क्या करोगे? बही खाता खोल दूं मैं भी अपनी शिकायतों की तो बोलो तुम क्या करोगे? निरुपमा (5.2.24)