इतना आसां था क्या हमें जुदा करना ? दोस्तों की दोस्ती , राहगीरों की मुस्कान , पड़ोसियों का प्यार , सब एक पल में हवा हो गए , देखने का मौका भी न मिला , और सारे एक दूसरे से जुदा हो गए , इतना आसां था क्या हमें जुदा करना ? सबको अपनी जान की परवाह हो गयी , एक पल में सारे दावे झूठे हुए , ये मानवता का कैसा चेहरा देखा! बस एक रोग, और सब विलग हो गए , बस एक भय, और सब मुख मोड़ गए , बच्चे , बुज़ुर्ग और हमउम्र , दोस्ती , वफ़ा और प्यार, सब धरे के धरे रह गए , लोग अपने घरों से भी किसी का हाल अब पूछते नहीं , व्हाट्सइएप, फेसबुक पर एक दूसरे को प्रोत्साहित करनेवाले , असल जीवन में सब एक दूसरे हतोत्साहित कर रहे हैं , यही थे वो रिश्ते ? यही थे वो लोग ? कुछ बंदिशें सरकार ने लगाईं हमारी, और कुछ खुद हमने.. सरकार ने कहा, हाथ मत मिलाना, किसी को छू लो तो झट हाथ धो लेना, छुआछूत का रोग है , छू लिया तो मर जाओगे. मर जाओगे ? मरने का भय हमारे अन्दर क्या पहले ही कम था? हाथ मिलाने को मना करते हो ? हम तो एक दूसरे को देख मुस्कुराएंगे भी नहीं , दूर से कोई आता न...