बारिश बूंदें और तुम,
ये तीन हैं या एक
कुछ समझ नहीं आता
समझ आए भी क्या,
कि तुम बूंदें और बारिश
तीनों ही तो प्रेम हैं,
प्रेम, जो प्रस्फुटित हुआ और रहा मुझमें,
प्रेम, जिसकी भाषा तुम और परिभाषा भी तुम,
बारिश की बूंदे ऐसे छूती हैं,
जेसे अनछुए ने छुआ हो
सहसा ही तुम याद आते हो,
याद आते हो... नहीं,
याद तो नहीं आते,
तुम यादों में नहीं रहते,
बस चलते फिरते सांस लेते हो मेरे अंदर।
निरुपमा (28.5.20)
ये तीन हैं या एक
कुछ समझ नहीं आता
समझ आए भी क्या,
कि तुम बूंदें और बारिश
तीनों ही तो प्रेम हैं,
प्रेम, जो प्रस्फुटित हुआ और रहा मुझमें,
प्रेम, जिसकी भाषा तुम और परिभाषा भी तुम,
बारिश की बूंदे ऐसे छूती हैं,
जेसे अनछुए ने छुआ हो
सहसा ही तुम याद आते हो,
याद आते हो... नहीं,
याद तो नहीं आते,
तुम यादों में नहीं रहते,
बस चलते फिरते सांस लेते हो मेरे अंदर।
निरुपमा (28.5.20)
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