ज़ब्त किए जब भी अपने एहसास को,
शोर करने भागने को दिल किया।
बोलने की कोशिश जब भी की मगर,
पांव जैसे जम गए, शब्द थम गए।
थामने की कोशिश बेमानी रही,
देखने को ख़ाली दरवाज़े मिले।
यूं मेरा माज़ी मेरे संग संग चला,
जिस तरह साया हो अपना ही कोई।
और तुम्हे पाने की वो जो चाह थी,
वो भी अब जाती रही, जाती रही।
निरुपमा (25.5.20)
शोर करने भागने को दिल किया।
बोलने की कोशिश जब भी की मगर,
पांव जैसे जम गए, शब्द थम गए।
थामने की कोशिश बेमानी रही,
देखने को ख़ाली दरवाज़े मिले।
यूं मेरा माज़ी मेरे संग संग चला,
जिस तरह साया हो अपना ही कोई।
और तुम्हे पाने की वो जो चाह थी,
वो भी अब जाती रही, जाती रही।
निरुपमा (25.5.20)
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