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पैरहन.........

न टूटते कसम ही हैं,
ना छूटता भरम ही है,
न दर्द को मरहम ही है,
इस दिल को बस भरम ही है।

जो लुट गए तो क्या हुआ,
सब छुट गए तो क्या हुआ,
वो फ़िर कभी मिला नहीं,
फ़िर भी कोई गिला नहीं,

इन आंसुओं के बहने से,
मेरी भला कैसी शिकस्त,
मेरे वजूद पर तेरा,
अब भी वो पैरहन ही है।
निरुपमा(30.5.20)


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