और एक रोज़...
उसकी आवाज़ थम गयी,
कदम जो लड़खड़ा गए थे, संभल गए,
वो रोज़ रोज़ की बेतहाशा
दौड़, ख़त्म हुई,
आरजुओं के उगने और दम
तोड़ने का सिलसिला ख़त्म हुआ,
शिकवे शिकायतें और हज़ारों
गिले जाते रहे,
ख़त्म हुई बारिशों की
सौंधी खुशबूओं से जुड़ी बातें,
मुस्कुराने का सिलसिला, रूठने मनाने का सिलसिला ख़त्म हुआ,
ख़त्म हुआ दिल का वो सफ़र
जो सूदूर उस तक पहोचता था,
बस यूँ हुआ कि एक रिश्ता
ख़त्म हुआ..
.....निरुपमा (27.5.20)
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