उसी के सामने हमने अपनी दास्तां कह दी,
कि जिसके सामने जाने से भी कतराया करते थे।
वो बैठा था मेरे ही रू-ब-रू मुझको ही तकता था,
कि जिसके रास्ते से अक्सर हम हट जाया करते थे।
ये कैसी कशमकश ने घर किया था अपने दर्मियां,
वो अपना हो चला था जिसको हम झुठलाया करते थे।
निरुपमा (23.7.20)
Comments
Post a Comment