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वो अपना हो चला था....

उसी के सामने हमने अपनी दास्तां कह दी,
कि जिसके सामने जाने से भी कतराया करते थे।
वो बैठा था मेरे ही रू-ब-रू मुझको ही तकता था,
कि जिसके रास्ते से अक्सर हम हट जाया करते थे।
ये कैसी कशमकश ने घर किया था अपने दर्मियां,
वो अपना हो चला था जिसको हम झुठलाया करते थे।
निरुपमा (23.7.20)

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बस यूं ही ....

अपना अपना दर्द था,अपनी अपनी शिकायते, कभी वो मुंह फेरकर चल दिए, कभी मैने नज़र झुकाकर काम लिया। बरसों से सुलगते तन मन को, बस पल भर का आराम मिला, जब मैंने नजर उठाई तो, ठीक सामने उसका सामान मिला। था दर्द दिलों में सदियों का, थीं रूह भी प्यासी प्यासी सी, उसने जो पलटकर देखा मुझे, मेरे दिल को ज़रा आराम मिला, अब बीत चुकी थी यादें भी और गुज़र गया था हर लम्हा, उस बंद गली के मोड़ पे फिर, ये किसका पड़ा सामान मिला, हर नक्श मिटाकर बैठी थी, मैं दिए बुझाकर बैठी थी, मुझको मेरे ही पहलू में, कोई किस्सा यूं अनजान मिला, बरसों से सुलगते तन मन को, बस पल भर का आराम मिला, निरुपमा (4.8.2023)

जाने दिया .......

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