बात तो कुछ भी न हुई,
न कुछ कहा, न सुना,
स्मृतियों के ताने बाने को सुलझाते अब काफी वक्त हो चला था,
ना प्यार, ना उलझन, ना दर्द, ना शिकायतें,
पर उसकी नज़र उठी, कुछ पूछने के लिए,
मेरी पलकें झुकी, कि वो सब कुछ तो जानता था।
मैंने एक और बार उसकी ओर देखा,
वो दूर पड़ी दीवार घड़ी को तक रहा था,
जो बताती थी, अब जाने का वक़्त हुआ,
मेरी पलकें झुकी और एक गहरी सांस के साथ उसको अलविदा कहा।
.... निरुपमा(8.7.20)
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