उसकी गली का रास्ता समंदर के ठीक बीचो बीच से निकलता था, एक गली बेहद संकिर्णं सी, मैं हल्के क़दमों से चलने की कोशिश करती हूं, लेकिन पांव ज़मी पर ना पर के लहरों पर परते जाते हैं, लहरें जो लगातार मुझे पीछे धकेलती जाती। मैं चलती जाती हूं, बिना रुके, हल्के हल्के कदम मेरे, सहमें सहमे कदम मेरे। आख़िर... उसके आंगन की वो पीली रौशनी वाली लालटेन पर मेरी नजर पड़ती है, होंठ अनायास ही मुस्कुराने लगते हैं, लालटेन के नीचे आराम कुर्सी पर बैठा वो शायद अपनी कोई मन पसंद किताब पढ़ रहा है। उसके चेहरे की मुस्कान साफ़ नज़र आ रही है मुझे। मैं उसकी ड्योढ़ी पर चुपचाप आकर बैठ जाती हूं। कि इस तरह उसे मुस्कुराते हुए देखना बेहद सुकून देता है।
करवट बदली तो देखा सागर का नामो निशान ना था। दीवाल घड़ी पर चार बजे थे। सुबह का सपना सुना है सच होता है।
... निरुपमा (1.6.20)
करवट बदली तो देखा सागर का नामो निशान ना था। दीवाल घड़ी पर चार बजे थे। सुबह का सपना सुना है सच होता है।
... निरुपमा (1.6.20)
Comments
Post a Comment