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ख्वाहिश

इन पलकों के ठीक पीछे जो चलता है वो क्या है!
रस्ते पर चलती कारें,
आसमान में उड़ते पंछी,
आते जाते लोग,
कोई नज़र ही नहीं आते,
इन पलकों के ठीक पीछे एक चेहरा होता है।
उस से जुड़ी अनगिनत यादें,
जो साथ जिए,
अनेकों ख्वाहिशें,
जिनको जीने का मौका ना मिला,
तुम्हे इस जीवन के अलग अलग क्षणों में लाकर देखा,
तुम्हारे आसपास खुद को रखकर देखा,
कभी अपने घर में तुमको,
कभी तुम्हारे घर में खुद को रखकर देखा,
स्कूल से कॉलेज की पढ़ाई तक साथ कर के देखी,
हर रोज़ होने वाली छोटी बड़ी घटनाओं में तुम्हारे साथ चलकर देखा,
और पाया,
आज भी इस दिल की अधूरी ख्वाहिश तुम ही हो,
आज भी इस अधूरे जीवन की पूर्णता तुमसे ही है।
.... निरुपमा(26.6.20)

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जाने दिया .......

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बही खाता खोल दूं मैं भी अपनी शिकायतों की, तो बोलो तुम क्या करोगे?

 बही खाता खोल दूं मैं भी अपनी शिकायतों की, तो बोलो तुम क्या करोगे? गुज़रे हुए लम्हों में जो बरसों की दफ्न यादें हैं, यादों में गहरे ज़ख्म हैं, ज़ख्मों पर परी परतें हैं। उन ज़ख्मों से परतों को गर हटा दूं, तो बोलो तुम क्या करोगे? बही खाता खोल दूं मैं भी अपनी शिकायतों की तो बोलो तुम क्या करोगे? तुमने मुझे छोड़ा था, मेरे सबसे बुरे वक्त में, जब तन्हाई बना साथी और आंसू बने श्रृंगार उस साथी उस श्रृंगार का तुमसे नाता जोड़ दूं, तो बोलो तुम क्या करोगे? बही खाता खोल दूं मैं भी अपनी शिकायतों की तो बोलो तुम क्या करोगे? निरुपमा (5.2.24)