प्यार भाषा है, ना पहचान,
ना किसी संबोधन का नाम।
ये जात नहीं, धर्म नहीं,
दीन- ओ- इमां भी नहीं।
ना बयां है, ना छिपा है।
प्यार को मापा तौला,
समझा या समझाया नहीं जा सकता।
कोई उदाहरण नहीं,
कोई पर्याप्त शब्द नहीं,
कोई प्रप्या- अप्राप्य वस्तु नहीं।
ये धर्म है न संस्कार है,
ये जोगी का जोग नहीं,
जोगन की माला नहीं
पाप पुण्य से परे,
धरती गगन से परे,
ये मुझसे तुझसे नहीं।
तुझमें मुझमें नहीं।
न पलकों में पलते सपने,
न आंखों से गिरे आंसू है।
ये राधा की पुकार नहीं,
श्याम की बंसी नहीं।
ये वचन नहीं, कथन नहीं।
प्यार ना तोड़ता है , ना जोड़ता है।
न गिरता न संभलता है।
ये गलियों से गुजरकर
मेहबूब के घर का रास्ता नहीं ।
ये ममता नहीं, लोड़ी नहीं।
ये साज श्रृंगार भी नहीं।
गीत नहीं संगीत नहीं।
ना आस है, ना उम्मीद है।
ये बच्चे की किलकारी नहीं ,
ये कोई सपना नहीं,
कोई हकीकत भी नहीं।
...... निरुपमा (15.6.20)
ना किसी संबोधन का नाम।
ये जात नहीं, धर्म नहीं,
दीन- ओ- इमां भी नहीं।
ना बयां है, ना छिपा है।
प्यार को मापा तौला,
समझा या समझाया नहीं जा सकता।
कोई उदाहरण नहीं,
कोई पर्याप्त शब्द नहीं,
कोई प्रप्या- अप्राप्य वस्तु नहीं।
ये धर्म है न संस्कार है,
ये जोगी का जोग नहीं,
जोगन की माला नहीं
पाप पुण्य से परे,
धरती गगन से परे,
ये मुझसे तुझसे नहीं।
तुझमें मुझमें नहीं।
न पलकों में पलते सपने,
न आंखों से गिरे आंसू है।
ये राधा की पुकार नहीं,
श्याम की बंसी नहीं।
ये वचन नहीं, कथन नहीं।
प्यार ना तोड़ता है , ना जोड़ता है।
न गिरता न संभलता है।
ये गलियों से गुजरकर
मेहबूब के घर का रास्ता नहीं ।
ये ममता नहीं, लोड़ी नहीं।
ये साज श्रृंगार भी नहीं।
गीत नहीं संगीत नहीं।
ना आस है, ना उम्मीद है।
ये बच्चे की किलकारी नहीं ,
ये कोई सपना नहीं,
कोई हकीकत भी नहीं।
...... निरुपमा (15.6.20)
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