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दास्तां......

और उसने एक रोज़ अपनी दास्तां लिखी।
उसकी दास्तां का एक एक कोना आरती की मौजूदगी का आभास दिलाता था। लोगों को ज़्यादा वक़्त न लगा ये पहचानने में कि इसकी बर्बादी का सबब कोई और नहीं, आरती है। आरती को रंगे हाथों पकड़ा गया।
उसके गीरेबां में, कुछ शेर थे, जो उसने सब से छिपकर लिखे थे। कमरे में कुछ तस्वीरें आड़ी तिरछी लगी हुई थी,
जिस से ये साफ़ होता था, कि आरती आज भी शेखर से बेइंतहां प्यार करती है। उसकी हथेली में एक लकीर भी पाई गई, जिसे देखकर ऐसा लगता था, जैसे कुदरत जिस लकीर को बनाना भूल गया था, उसे आरती ने खुद ही खंजर की नोक से बनाया है, उस लकीर में शेखर का नाम लिखा था।

आरती को समाज के ख़िलाफ़ इश्क़ करने और एक इंसान को ख़ुदा मानने के जुर्म के लिए गुनेहगार ठहराया गया।

फ़ैसला यूं हुआ कि उसे पूरी ज़िन्दगी अकेले जीने के लिए छोड़ दिया जाए।
.... निरुपमा (11.6.20)

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